उलझन में डालतीं वही दो राहें
पास बुला कर तरसातीं वो दो राहें
मिलन की चाह कभी क़दमों को गति देती
आज उन क़दमों के निशाँ यह नज़र है ढूँढती
धुँधला गया एक चेहरा, शून्य ताकता वहाँ अब
खालीपन से सराबोर, अधरों ने साधा है मौन अब
साँसें गईं थम, चेहरा हुआ ओझल, आवाज़ है गुम,
हैं अब मेरी भावनाएँ, जज़्बात और तमन्नाएँ सुन्न
पास बुला कर तरसातीं वो दो राहें
मिलन की चाह कभी क़दमों को गति देती
आज उन क़दमों के निशाँ यह नज़र है ढूँढती
धुँधला गया एक चेहरा, शून्य ताकता वहाँ अब
खालीपन से सराबोर, अधरों ने साधा है मौन अब
साँसें गईं थम, चेहरा हुआ ओझल, आवाज़ है गुम,
हैं अब मेरी भावनाएँ, जज़्बात और तमन्नाएँ सुन्न
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