Monday, April 7, 2014

मनःस्थिति

वही जानी पहचानी सी राहें बुलाती हैं मुझे,
कभी जिन राहों को कहीं छोड़ आयी थी मैं,
वही कुछ अपनी सी राहें जो खो गयी हैं कहीं,
आज फिर पीछे से आवाज़ दे कर बुलाती हैं मुझे

कुछ अधूरी चीज़ों को अभी पूरा करना बाकी था,
कुछ तस्वीरों में अभी रंग भरना बाकी था,
कुछ यादों में अभी खुशबू महकाना बाकी था,
कुछ टुकड़ों को अभी पोटली में बांधना बाकी था

कानों में गूँज गया वो प्यार सा सम्बोधन,
न था उम्र का बोध जहाँ न समय का था कोई बंधन
क्षितिज जहां दूर न था, हाथों में था जहां आसमान,
तसवीरें धुंधली हुईं पर खनका फिर वो प्यारा सम्बोधन

धूलि धूसरित चेहरों में चमक थी जो बचपन की,
समय के साथ यादों ने ओढ़ी है वह चादर धूल की,
उन्मुक्त ह्रदय में परछाई थी उन्मुक्त फैले आस्मां की
एक अजीब से खालीपन ने घेरा है उस स्वछंद मन के भाव को

हकीकत से याद बनने का सफ़र इतना छोटा होगा किसे पता था
यादों को समेट कर तरतीब से लगाने का काम रहता है अभी
कैसे रोकूँ समय कि धIरा को जो अपनी गति से बद्ध है
कैसे चुराऊँ एक भी पल उन अनगिनत बीते पलों के कोष से

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